Ek Shunya Bajirao (एक शून्य बाजीराव)-C. T. Khanolkar Marathi (novel) Book katha-kadambari

80.00

Author         :      C. T. Khanolkar 

Edition         :     4 ed

Language ‏   :      Marathi

Publisher  ‎  :      Mouj Prakashan

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Ek Shunya Bajirao (एक शून्य बाजीराव)-C. T. Khanolkar Marathi (novel) Book katha-kadambari

कवि, कहानीकार तथा प्रगल्भ उपन्यासकार खानोलकर के नाटकों में दु:ख के कई रूप उभरकर आते हैं। नियति और मानव का रिश्ता क्या है? पाप–पुण्य आदि संकल्पनाओं के बारे में वे क्या सोचते हैं? यह हमें उनके नाटकों से पता चलता है। खानोलकर की कविता उनकी जीवनसखी थी। उनके सहे दु:खों का अन्धकार उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होता है। दु:ख के स्वीकार की अनिवार्यता से ही दु:ख की ओर एक तटस्थता से, एक तत्त्वज्ञ की भाँति देखने की शक्ति शायद उन्हें मिली थी।

कवि, कहानीकार तथा उपन्यासकार के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके खानोलकर ने नाटक लेखन बड़ी देर बाद शुरू किया। सन् 1966 में उनका बहुचर्चित नाटक ‘एक शून्य बाजीराव’ मंच पर आया और पुस्तक रूप में भी छपा। अनेकों रंग–शैलियों को अपने में समा लेनेवाला बाजीराव अपने आपको कई माध्यमों में प्रकट करता है। कभी वह विदूषक के अन्दाज़ में खड़ा हो जाता है, तो कभी भागवतकार, कथाकार या कीर्तनकार की शैली में कोई आख्यान लगा देता है। कभी सर्कस के मसखरे–सी हरकतें करता, कलाबाज़ियाँ करता, अपने अंग–प्रत्यंग की अभिव्यक्ति से आशय को समृद्ध करता है, तो कभी एकल नाटक–सा आत्मगत शुरू कर देता है। कभी उसकी भाषा में संस्कृत वाणी की काव्यात्मकता होती है, तो कभी महानुभाव पन्थी रचनाकारों की रहस्यमयी लाडली मिठास–भरी गेयता, कभी लोक नाटकों का चटखारे–भरा मुँहफट व्यंग्य, तो कभी किसी विवेकी विद्वान की गरिमा–भरी गम्भीरता। इन सभी आविष्कारों में अपना दु:ख, वेदना और विकार प्रकट करते बाजीराव का चरित्र आकार लेता है। इसी कारण न केवल मराठी रंगमंच का बल्कि आधुनिक भारतीय रंगमंच का बाजीराव एक मुखर ‘अभिनय उद्गार’ है। रंगकर्मियों के लिए एक बहुत बड़ा आह्वान।

Available at Ksagar Book Centre or on www. ksagaronline.com

or call on 9545567862 /02024453065

 

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