

Aaina E Ghazal (आईना ए गज़ल)-Dr. Vinay Waikar Dr. Zarina Sani Marathi Book katha-kadambari (Novel) Continetal
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Author : Dr. Vinay Waikar Dr. Zarina Sani
Edition : 7 ed
Language : Marathi
ISBN : 9788174211736
Publisher : Continental Prakashan
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Aaina E Ghazal (आईना ए गज़ल)-Dr. Vinay Waikar Dr. Zarina Sani Marathi Book katha-kadambari (Novel) Continetal
मेरे मित्र डॉक्टर प्रमोद और भाभी मंगला कोलवाडकर के आग्रह को स्वीकार कर १९८० में मैं आईना-ए-गजल के संकलन में जुट गया। सौभाग्यवश उसी समय मेरा परिचय सानी परिवार से हुआ। डॉक्टर जरीना सानी लेडी अमृताबाई डागा कॉलेज नागपूर में उर्दू और पर्शियन भाषाओं की प्राध्यापिका थी और जनाब अब्दुल हलीम सानी केमिस्ट्री के प्राध्यापके जैवश्य थे, लेकिन उन्हें उर्दू गजल और शेरो-शायरी से गहरा लगाव था। हम तीनों ने मिलकर काम शुरू किया। हमारे साथ मेरी पूज्य माँ प्रभावतीजी भी बैठती थीं। मेरी माँ संस्कृत की पंडिता हैं, साथ साथ हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी में भी प्रभुत्व रखती हैं।
जनवरी १९८२ के प्रथम सप्ताह तक हस्तलिखित तैयार हो गया। हम प्रकाशक की तलाश ही में थे कि १४ जनवरी १९८२ को बाजी ऊर्फ जरीना अचानक हमेशा के लिये खामोश हो गईं। उनका आखिरी जुमला था, “भैया पुस्तक ज़रूर पूरी करना, छोड़ मत देना।”
चार-पांच महिने तो बस ऐसे ही गुज़र गए। फिर एक दिन मैंने और सानी भाई ने दिल पक्का किया और आईन-ए-ग़ज़ल मंज़रे-आम बर लाकर ही सांस ली। इस सफ़र में दोस्त मिलते गए और काम आसान होता गया।
मैं अकेला ही चला था जानिये मंजिल मगर।
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया ।।
आज मुझे यूं महसूस होता है जैसे मजरूह साहब ने यह शेर शायद मेरे लिये ही लिखा हो! मुझे जिन दोस्तों ने मदत की है उनकी मिनती नहीं हो सकती फिर भी अगर मैं जगजीत-चित्रा सिंह, डॉ. प्रबोधचंद्र देशमुख, डॉ. श्रीकांत चौरघडे, विवेक-नीला फडणीस, सुदीप मुखर्जी, शकील एजाज़, हिफजुर रहमान, मिदहतुल अख्तर, प्रो. मंशा-उररहमान खाँ ‘मंशा’ और डॉ. अशोक अलका मोकदम, इन महानुभावों को धन्यवाद न दूँ तो वह बड़ी भूल होगी। मैं इन सब दोस्तों की तारीफ़ में बस इतना ही कहूंगा-
बहोत छोटे हैं मुझसे मेरे दुश्मन ।
जो मेरे दोस्त हैं, मुझसे बड़े हैं ।।
अरे हाँ, मैं मेरी सुविद्य पत्नी डॉक्टर वीणाजी का अभिवादन करना तो भूल ही गया। पहले उन्होंने घर गृहस्थी संभाली, बाद मुझे संभाला और फिर मैंने पुस्तक संभाली! वीणाजी, आईना-ए-ग़ज़ल के निर्माण में आपका भी अहम सहयोग है।
आज आईना-ए-ग़ज़ल की पाँचवी आवृत्ती वाचकों की खिदमत में पेश करते हुए मैं बेहद खुशी महसूस कर रहा हूं। काश, आज ज़रीना दीदी और जनाब अब्दुल हलीम सानी साहब हमारे साथ होते ! जी हाँ, सानी साहब ११ मई २००० को अल्लाह को प्यारे हो गए। अल्लाह उनकी रूह को सुकून बख़्शे!
इस आवृत्ति में लगभग ८ हजार से ज़ियादा शब्द हैं, साढ़े पाँच हजार से ज़ियादा अशआर हैं और पृष्ठ संख्या २३९ से बढ़कर २६४ हो गई है।
Available at Ksagar Book Centre on www. ksagaronline.com
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